श्री काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग - उत्तर प्रदेश
यह ज्योतिर्लिङ्ग उत्तर भारत की प्रसिद्ध नगरी काशी में स्थित है। इस नगरी का प्रलयकाल में भी लोप नहीं होता। उस समय भगवान् अपनी वासभूमि इस पवित्र नगरी को अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं और सृष्टि काल आने पर पुनः यथास्थान रख देते हैं। सृष्टि की आदि स्थली भी इसी नगरी को बताया जाता है। भगवान् विष्णु ने इसी स्थान पर सृष्टि कामना से तपस्या कर के भगवान् शङ्कर जी को प्रसन्न किया था। अगस्त्य मुनि ने भी इसी स्थान पर अपनी तपस्याद्वारा भगवान् शिव को सन्तुष्ट किया था। इस पवित्र नगरी की महिमा ऐसी है कि यहाँ जो भी प्राणी अपने प्राण त्याग करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है भगवान् शङ्कर उस के कान में 'तारक' मन्त्र का उपदेश करते हैं। इस मन्त्र के प्रभाव से पापी से पापी प्राणी भी सहज ही भव सागर की बाधाओं से पार हो जाते हैं।
विषयासक्तचित्तोऽपि त्यक्तधर्मरतिर्नरः । इह क्षेत्रे मृतः सोऽपि संसारे न पुनर्भवेत् ॥
जपध्यानविहीनानां ज्ञानवर्जितचेतसाम् । ततो दुःखाहतानां च गतिर्वाराणसी नृणाम् ॥
तीर्थानां पञ्चकं सारं विश्वेशानन्दकानने । दशाश्वमेधं लोलार्क: केशवो बिन्दुमाधवः ॥
पञ्चमी तु महाश्रेष्ठा प्रोच्यते मणिकर्णिका । एभिस्तु तीर्थ वर्यैश्च वर्ण्यते ह्यविमुक्तकम् ॥
इस परम पवित्र नगरी के उत्तर की तरफ ॐकारखण्ड, दक्षिण में केदार खण्ड और बीच में विश्वेश्वर खण्ड है। प्रसिद्ध विश्वेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग इसी खण्ड में अवस्थित है। पुराणों में इस ज्योतिर्लिङ्ग के सम्बन्ध में यह कथा दी गयी है-
भगवान् शङ्कर पार्वती जी का पाणि ग्रहण कर के कैलास पर्वत पर रह रहे थे। लेकिन वहाँ पिता के घर में ही विवाहित जीवन बिताना पार्वती जी को अच्छा न लगता था। एक दिन उन्हों ने भगवान् शिव से कहा-"आप मुझे अपने घर ले चलिये। यहाँ रहना मुझे अच्छा नहीं लगता। सारी लड़कियाँ शादी के बाद अपने पति के घर जाती हैं, मुझे पिता के घर में ही रहना पड़ रहा है।" भगवान् शिव ने उनकी यह बात स्वीकार कर ली। वह माता पार्वती जी को साथ लेकर अपनी पवित्र नगरी काशी में आ गये। यहाँ आकर वे विश्वेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग के रूप में स्थापित हो गये।
शास्त्रों में इस ज्योतिर्लिङ्ग की महिमा का निगदन पुष्कल रूपों में किया गया है। इस ज्योतिर्लिङ्ग के दर्शन-पूजनद्वारा मनुष्य समस्त पापों तापों से छुटकारा पा जाता है। प्रतिदिन नियम से श्री विश्वेश्वर के दर्शन करने वाले भक्तों के योगक्षेम का समस्त भार भूतभावन भगवान् शङ्कर अपने ऊपर ले लेते हैं। ऐसा भक्त उन के परमधाम का अधिकारी बन जाता है। भगवान् शिवजी की कृपा उसपर सदैव बनी रहती है। रोग, शोक, दुःख दैन्य उस के पास भूल कर भी नहीं जाते।