श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग

श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग - झारखंड

यह ज्योतिर्लिङ्ग बिहार प्रान्त के सन्थाल परगने में स्थित है। शास्त्र और लोक दोनों में इसकी बड़ी प्रसिद्धि है। इसकी महिमा का वर्णन भूरिशः किया गया है।

इसकी स्थापना के विषय में यह कथा कही जाती है—एक बार राक्षसराज रावण ने हिमालय | पर जाकर भगवान् शिव का दर्शन प्राप्त करने के लिये बड़ी घोर तपस्या की। उसने एक-एक कर के अपने सिर काट कर शिवलिङ्ग पर चढ़ाने शुरू किये। इस प्रकार उसने अपने नौ सिर वहाँ काटकर चढ़ा डाले। जब वह अपना दसवाँ और अन्तिम सिर काट कर चढ़ाने के लिये उद्यत हुआ तब भगवान् शिव अति प्रसन्न और सन्तुष्ट होकर उसके समक्ष प्रकट हो गये। शीश काटने को उद्यत रावण का हाथ पकड़ कर उन्होंने उसे वैसा करने से रोक दिया। उसके नवों सिर भी पहले की तरह जोड़ दिये और अत्यन्त प्रसन्न हो कर उस से वर माँगने को कहा।

रावण ने वर के रूप में भगवान् शिव से उस लिङ्ग को अपनी राजधानी लङ्का में ले जाने की आज्ञा माँगी। भगवान् शिव ने उसे यह वरदान तो दे दिया लेकिन एक शर्त भी उसके साथ लगा दिया। उन्होंने कहा, 'तुम इसे ले जा सकते हो किन्तु यदि रास्ते में इसे कहीं रख दोगे तो यह वहीं अचल हो जायगा, तुम फिर इसे उठा न सको गे। रावण इस बात को स्वीकार कर उस शिवलिङ्ग को उठा कर लङ्का के लिये चल पड़ा। चलते-चलते एक जगह मार्ग में उसे लघुशङ्का करने की आवश्यकता महसूस हुई। वह उस शिवलिङ्ग को एक अहीर के हाथ में थमा कर लघुशङ्का की निवृत्ति के लिये चल पड़ा। उस अहीर को शिवलिङ्ग का भार बहुत अधिक मालूम दिया, वह उसे संभाल न सका। विवश होकर उसने उसे वहीं भूमिपर रख दिया। रावण जब लौटकर आया तब फिर बहुत प्रयत्न करने के बाद भी उस शिवलिङ्ग को किसी प्रकार भी उठा न सका । अन्तमें निरुपाय होकर उस पवित्र शिवलिङ्ग पर अपने अंगूठे का निशान बना कर उसे वहीं छोड़ कर लङ्का को लौट गया। तत्पश्चात् ब्रह्मा, विष्णु आदि देवताओं ने वहाँ आकर उस शिवलिङ्ग का पूजन किया। इस प्रकार वहाँ उसकी प्रतिष्ठा कर वे लोग अपने-अपने धाम को लौट गये। यही ज्योतिर्लिङ्ग श्री वैद्यनाथ के नाम से जाना जाता है।

यह वैद्यनाथ ज्योतिर्लिङ्ग अनन्त फलों को देने वाला है। यह ग्यारह अङ्गुल ऊँचा है। इसके ऊपर अँगूठे के आकार का गढ़ा है। कहा जाता है कि यह वही निशान है जिसे रावणने अपने अँगूठे से बनाया था। यहाँ दूर-दूर से तीर्थों का जल लाकर चढ़ाने का विधान है। रोग मुक्ति के लिये भी इस ज्योतिर्लिङ्ग की महिमा बहुत प्रसिद्ध है। पुराणों में बताया गया है कि जो मनुष्य इस ज्योतिर्लिङ्ग का दर्शन करता है, उसे अपने समस्त पापों से छुटकारा मिल जाता है उस पर भगवान् शिव की कृपा सदा बनी रहती है। दैहिक, दैविक, भौतिक कष्ट उसके पास भूलकर भी नहीं आते। भगवान् भूतभावन की कृपा से वह सारी बाधाओं, समस्त रोगों-शोकों से छुटकारा पा जाता है। उसे परम शान्तिदायक शिवधाम की प्राप्ति होती है। शिव का कृपाप्राप्त जन सारे संसार के लिये सुखदायक होता है। उसके सारे कृत्य भगवान् शिव को समर्पित कर के किये जाते हैं। सारे संसार में उसे भगवान् शिव के ही दर्शन होते हैं। सारे प्राणियों के प्रति उसमें ममता और दयाका भाव होता है। सभी भेदों में उसकी अभेद दृष्टि हो जाती है। किसी भी प्राणी के प्रति उस में ईर्ष्या, द्वेष, वैर, घृणा, क्रोध का अभाव हो जाता है। ऐसा भक्त सदैव सभी के कल्याण और हित में लगा रहता है। भगवान् शिव की भक्ति का यह अमोघ फल हमें अवश्य ही प्राप्त करना चाहिये।

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