श्री त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग - महाराष्ट्र
यह ज्योतिर्लिङ्ग महाराष्ट्र प्रान्त में नासिक से ३० कि० मी० पश्चिम में अवस्थित है।
इस ज्योतिर्लिङ्ग की स्थापना के विषय में शिवपुराण में यह कथा दी गयी है-
एक बार महर्षि गौतम के तपोवन में रहनेवाले ब्राह्मणों की पत्नियाँ किसी बात पर उनकी पत्नी अहल्या से नाराज हो गयीं। उन्होंने अपने पतियों को ऋषि गौतम का अपकार करने के लिये प्रेरित किया। उन ब्राह्मणों ने इसके निमित्त भगवान् श्री गणेश जी की आराधना की। उनकी आराधना से प्रसन्न हो गणेश जी ने प्रकट होकर उनसे वर माँगने को कहा। उन ब्राह्मणों ने कहा- "प्रभो! यदि आप हम पर प्रसन्न हैं तो किसी प्रकार ऋषि गौतम को इस आश्रम से बाहर निकाल दें।" उनकी यह बात सुनकर गणेशजी ने उन्हें ऐसा वर न माँगने के लिये समझाया। किन्तु वे अपने आग्रह पर अटल रहे। अन्ततः गणेश जी को विवश होकर उनकी बात माननी पड़ी। अपने भक्तों का मन रखने के लिये वे एक दुर्बल गाय का रूप धारण कर के ऋषि गौतम के खेत में जाकर चरने लगे। गाय को फसल चरते देख कर ऋषि बड़ी नरमी के साथ हाथ में तृण लेकर उसे हाँकने के लिये लपके। उन तृणों का स्पर्श होते ही वह गाय वहीं मरकर गिर पड़ी। अब तो बड़ा हाहाकार मचा। सारे ब्राह्मण एकत्र हो गोहत्यारा कहकर ऋषि गौतम की भूरि-भूरि भर्त्स ना करने लगे। ऋषि गौतम इस घटना से बहुत आश्चर्य चकित और दुःखी थे। अब उन सारे ब्राह्मणों ने उनसे कहा कि तुम्हें यह आश्रम छोड़कर अन्यत्र कहीं दूर चले जाना चाहिये। गोहत्यारे के निकट रहने से हमें भी पाप लगेगा। विवश होकर ऋषि गौतम अपनी पत्नी अहल्या के साथ वहाँ से एक कोस दूर जाकर रहने लगे। किन्तु उन ब्राह्मणों ने वहाँ भी उनका रहना दूभर कर दिया। वे कहने लगे "गोहत्या के कारण तुम्हें अब वेद पाठ और यज्ञादि के कार्य करने का कोई अधिकार नहीं रह गया है।" अत्यन्त कातर भाव से ऋषि गौतम ने उन ब्राह्मणों से प्रार्थना की कि आप लोग मेरे प्रायश्चित्त और उद्धार का कोई उपाय बतावें। तब उन्होंने कहा- "गौतम! तुम अपने पाप को सर्वत्र सब को बताते हुए तीन बार पूरी पृथिवी की परिक्रमा करो। फिर लौटकर यहाँ एक महीने तक व्रत करो। इसके बाद 'ब्रह्मगिरि की १०१ परिक्रमा करने के बाद तुम्हारी शुद्धि होगी अथवा यहाँ गङ्गा जी को लाकर उनके जल से स्नान करके एक करोड़ पार्थिव शिवलिङ्गों से शिवजी की आराधना करो। इसके बाद पुनः गङ्गाजी में स्नान करके इस ब्रह्मगिरि की ११ बार परिक्रमा करो। फिर सौ घड़ों के पवित्र जल से पार्थिव शिवलिङ्ग को स्नान कराने से तुम्हारा उद्धार होगा।" ब्राह्मणों के कथनानुसार महर्षि गौतम वे सारे कृत्य पूरे कर के पत्नी के साथ पूर्णतः तल्लीन होकर भगवान् शिव की आराधना करने लगे। इससे प्रसन्न हो भगवान् शिव ने प्रकट होकर उन से वर माँगने को कहा। महर्षि गौतम ने उनसे कहा- "भगवन्! मैं यही चाहता हूँ कि आप मुझे गोहत्या के पाप से मुक्त कर दें।" भगवान् शिव ने कहा- "गौतम! तुम सदैव, सर्वथा निष्पाप हो। गोहत्या तुम्हें छलपूर्वक लगायी गयी थी। छलपूर्वक ऐसा करवाने वाले तुम्हारे आश्रम के ब्राह्मणों को मैं दण्ड देना चाहता हूँ।" गौतम ने कहा- "प्रभो! उन्हों के निमित्त से तो मुझे आपका दर्शन प्राप्त हुआ है। अब उन्हें मेरा परमहित समझकर उन पर आप क्रोध न करें।" बहुत से ऋषियों, मुनियों और देवगणोंने वहाँ एकत्र हो गौतम की बातका अनुमोदन करते हुए भगवान् शिव से सदा वहाँ निवास करने की प्रार्थना की। वे उनकी बात मानकर वहाँ त्र्यम्बक ज्योतिर्लिङ्ग के नाम से स्थित हो गये। गौतम जी द्वारा लायी गयी गङ्गा जी भी वहीं पास में गोदावरी नाम से प्रवाहित होने लगीं। यह ज्योतिर्लिङ्ग समस्त पुण्यों को प्रदान करने वाला है।